बड़ा मंगल सिर्फ हिन्दू धर्म की आस्था का प्रतीक नहीं बल्कि विभिन्न धर्मों के लोगों की इसमें है आस्था
“बड़ा मंगल” ज्येष्ठ माह में पडऩे वाले मंगल को राजधानी लखनऊ में मनाया जाने वाला बड़ा मंगल सिर्फ हिन्दू धर्म की आस्था का प्रतीक ही नहीं है बल्कि विभिन्न धर्मों के लोगों की भी इसमें आस्था है। इस आयोजन में हिन्दू, मुस्लिम, सिख व ईसाई आदि सभी धर्मो के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
चार सौ साल पुरानी इस परंपरा ने इतना वृहद रूप ले लिया है कि अब पूरे लखनऊ के हर चौराहे व हर गली पर भंडारा चलता है, इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए आज आल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसिएशन द्वारा भाई मनीष शुक्ल द्वारा आयोजित भंडारे में अपने सदस्यों के साथ सम्मिलित होकर इस पुनीत कार्य में योगदान किया —
नयी पीढ़ी को ये बताना ज़रूरी है कि इस प्रथा की शुरुआत एक मुस्लिम बेगम ने की थी और अब बड़े मंगल का ये स्वरुप एक वृहद रूप ले चूका है —
बात है 1797 इस्वी के आसपास की अवध में रानी छत्रकुंवर (मलका ऐ ज़मानी) बहु बेगम ने मन्नत मांगी थी की उनके बेटे सआदत अली खान को अवध का नवाब बने तो वो हज़रत अली (अ.स.) के नाम पर एक बस्ती बसाई जाएगी और उसमें ही हनुमान जी का मंदिर भी बनेगा, सआदत अली खान अवध के नवाब बन गये।
लिहाज़ा हज़रत अली (अ.स.) के नाम पर बस्ती कायम हुई उसे अली गंज के नाम से जाना जाता है और अलीगंज में ही हनुमान जी का मंदिर बना जिसे अब हनुमान जी के पुराने मंदिर के नाम से जाना जाता है इस जगह को अब मेहदी टोला के नाम से जाना जाता है ,यहाँ मंदिर के अलावा गुरुद्वारा,मस्जिद भी कायम हुई।
सआदत अली खान की पैदाइश मंगल के दिन हुई इसलिए उनकी माँ उन्हें मंगलू कहती थी मन्नत पूरी हो चुकी थी मंदिर भी बन चुका था इस मंदिर पर “चाँद तारा” आज भी कायम है, उसी दौरान जेठ महीने के पहले मंगल को यहाँ पहले मेले का आयोजन हुआ और कर्बला वालों की याद में सरकार की तरफ से लखनऊ जगह -२ सबील (प्याऊ) लगी और प्रसाद बाटा गया।
इसके बाद सरकार ने जेठ महीने के पहले मंगल को बड़ा मंगल घोषित किया और सरकारी छुट्टी का एलान कर दिया तब से लेकर आज तक इस आदेश का पालन होता है और जेठ माह में पड़ने वाले सभी मंगलवार को पुराने हनुमानजी के मंदिर के साथ नए हनुमान मंदिर (जिसकी तामीर राजा जाट मल ने करवाई थी ) लखनऊ शहर के सभी हनुमान जी मंदिरों के अलावा जगह जगह सबील (प्याऊ) लगतें हैं और प्रसाद बंटता है .अवध की गंगा जमुनी तहज़ीब की यह मिसाल आज भी कायम है लखनऊ में जेठ माह के मंगल के दिन इस पुरानी परम्परा को निभाया जा रहा है।