आईना हूँ, जो देखूँगा, जो समझूंगा, वो सब साफ़ साफ लिख दूँगा
हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें
किसी के हक़ में, किसी के खिलाफ़ लिख दूँगा,
मैं तो आईना हूँ, जो देखूँगा, जो समझूंगा, वो सब साफ़ साफ लिख दूँगा.

हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें, ऑनलाइन जर्नलिज्म के इस दौर में हिंदी पत्रकारिता कहीं दूर, बहुत दूर जाते दिख रही है, वेब आधारित पत्रकारिता में हिंदी और इंग्लिश का मिला जुला नया स्वरूप, हिंगलिश पत्रकारिता ने न सिर्फ पत्रकारो का स्वरूप बदला है बल्कि भाषा शैली का क़त्लेआम कर दिया है।
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एक तरफ TRP दौड़ की पत्रकारिता में पत्रकारो को उछलते, कूदते, अभिनय, नाच, गाने में भी पारंगत होने की ज़रूरत हो गयी है जिसने न तो किसी भाषा शैली की ज़रूरत है और न ही किसी शब्दावली की, वहीं दूसरी तरफ केंद्र और प्रदेश सरकार की हिंदी समाचार पत्रों की तरफ उदासीनता से हिंदी भाषी समाचार पत्र बड़े आर्थिक।संकट से गुज़र रहे है जिसके चलते हिंदी पत्रकारिता भी दम तोड़ते नज़र आ रही है।
आर्थिक मंदी और सरकार की उदासीनता का सबसे बड़ा असर हिंदी भाषी क्षेत्रो के समाचार पत्रों पर देखने को मिलता है, वहीं ऑनलाइन पत्रकारिता ने भाषा शैली, वर्ण व्याख्या सब कुछ बदल।दिया है, न हिंदी की वर्ण व्याख्या होती है और न ही कोई शब्दावली नजर आती है, न पूर्णविराम होता है और न ही किसी तरह की मात्रा की जरूरत होती है, लेकिन जो दिखता है, वही बिकता है के चलन के।इस दौर में हिंदी पत्रकारिता को हिंगलिश भाषा शैली ने बदल दिया है जो भविष्य में हिंदी पत्रकारिता के।लिए एक बड़ा संकट दिखाई देता है।
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ऑल इंडिया न्यूज़पेपर एसोसिएशन (आईना), समाचार पत्रों के अस्तित्व को बचाये रखने हेतु सदैव प्रयासरत है जिससे हिंदी पत्रकारिता को बचाया जा सके, आईना के लिए बड़े गर्व की बात है कि हिंदी पत्रकारिता की बुनियाद हिंदुस्तान की सरजमीं पर जिस शख्स ने रखी थी वह आईना के राष्ट्रीय अध्यक्ष की सरजमीं के कनपुरिया पत्रकार थे, पंडित जुगल किशोर शुक्ला जी का ताल्लुक क्रांतिकारी नगरिया कानपुर से था, जिन्होंने पत्रकारिता जगत की शुरुआत एक हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र उदंत मार्तंड के नाम से 1826 में कोलकाता से की थी। जिस तरह हमने अपने पत्रकारिता के शुरुआती दौर में 500 प्रतियाँ प्रकाशित कर एक हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र लखनऊ शहर से शुरू किया था ठीक वैसे ही आज से 194 साल पहले पंडित जी ने कोलकाता से मात्र 500 प्रतियां हिंदी भाषी समाचार पत्र की बुनियाद रखी थी, आज के हालात और उस वक्त के हालात में कोई बहुत भारी बदलाव नहींआया, अंग्रेज़ी शासन काल की दमनकारी नीतियों के खिलाफ सच की मशाल बुलंद करना उतना ही मुश्किल था जितना आज के दौर में सच लिखना है, लेकिन तब भी आईना दिखाने वाले पत्रकार थे और आज भी ऐसे पत्रकार मौजूद है। अपनी इन्हीं आदतों के चलते बदनाम हूँ, क्योंकि हर परिस्थिति में सच के लिए लड़ने को तैयार हूँ,,,