घटिया आजम खान को मिला अशोक सिंघल का नाम !

न नाम बदला और न ही ताज नगरी का रंग रूप !!

हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा

और कुछ ऐसा ही हाल है उत्तर प्रदेश की जगमगाती आगरा नगरी का।

शुक्रिया गूगल बाबा, आपने ऐसा घुमाया की छम्मन लाल की पूड़ी की दुकान न मिली लेकिन आगरा की गलियों में खूब चक्कर लगवाया। स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत के दर्शन का सीधा हाल ताज नगरी में गूगल बाबा की घुमक्कड़ी के दौरान खूब दिखाया, खुले में शौच का प्रतिबंध सरकार का नारा था लेकिन सड़कों पर शौच और कूड़े का ढ़ेर सरकारी योजनाओ का ताजनगरी में आईना था। आगरा की परेशान जनता ने अपना सर मुंडवा कर अनोखा प्रदर्शन दिखाया लेकिन सड़कों का बुरा हाल, गड्ढे, कूड़े का ढेर इनकी गंजी और चिकनी चांद देखकर भी न तरस खाया। गड्ढा मुक्त अभियान और आगरा की अंतरराष्ट्रीय पहचान को भी सरकारी नुमाइंदों ने नही बक्शा और आगरा की इसी बदहाली पर आसमान भी गरज गरज कर खूब बरसा और जनता को अपने साथ रुलाया।

भयमुक्त शासन और मस्त प्रशासन अपने ही अंदाज़ में खोया खोया, हैरान परेशान नज़र आया, न बदहाली और न गड्ढा मुक्त अभियान इनको नज़र आया। I Love Agra का तामझाम और जगमगाता बोर्ड ज़रूर नज़र आया।

नाम बदलने की मुहिम पर सरकारी तंत्र कारगर नज़र आया और आगरा में भी अपना खेल दिखाया। 27 सितंबर को घटिया आज़म खान गली में जन्मे विश्व हिंदू परिषद के दिवंगत नेता अशोक सिंघल के नाम पर गली का नाम तो बदल दिया लेकिन घटिया आजम खान के नाम से जो सड़क अपनी पहचान बना चुकी थी, उसकी दरो दीवारों पर आज भी घटिया आजम खान का नाम दर्ज दिखा और गली के हालात भी अशोक सिंघल का नाम पाने के बाद सिंघम की तरह का हाल नहीं बयान कर रहे है बल्कि घटिया हालातों के दीदार करा रहे हैं।

घटिया आजम खान को मिला अशोक सिंघल का नाम !

आगरा में इस घटिया का तात्पर्य या मतलब बेकार वाले घटिया से नहीं हैं, आगरा में जिस जगह घटिया आजम खान है वह कभी एक निचला इलाका था और इसे घाटी कहा जाता था जो धीरे धीरे वक्त के साथ जब आबादी में तब्दील हुआ तो घाटी से घटिया बन गया और आजम खान कोई सियासी या किसी राजनीतिक संघठन के पदाधिकारी या नेता नही थे बल्कि अकबर ने अपने एक वज़ीर को “खाने आजम” की उपाधि दी थी और उनके उस वज़ीर का नाम अज़ीज़ कोका था जो इसी घाटी में रहते थे।

सरकार के नाम बदलने की योजनाओं में घटिया आजम खान का नाम विश्व हिंदू परिषद के बड़े नेता अशोक सिंघल के नाम पर तो रख दिया लेकिन सरकारी योजनाओं की तरह न तो इस गली का रंग रूप बदला और ना ही कोई हालात बदले।

घटिया आजम खान के पास से एक संकरी गली छिली ईंट के नाम से थी, वहां की दुकानों में मिलने वाले सामानों से गली का नाम भी परिभाषित होता दिख रहा था, दुकानों में ईटों को छीलकर छोटी-बड़ी मूर्तियों की अनेक दुकानें थी जिन्हें देखकर गली के नामकरण का पता चलता था। थोड़ा सा आगे बढ़ने पर हींग की महक तो नही आयी लेकिन गली का नाम हींग की मंडी चमक रहा था और इस गली में चलना तो दूर निकलना भी बड़ा मुश्किल था, छम्मन लाल की पूड़ी और गूगल बाबा का घुमावदार रास्ता लखनऊ की भूलभुलैय्या का दीदार आगरा में करा रहा था।

अकबर बादशाह के शासनकाल में हींग की मंडी में बड़े पैमाने पर अफगानिस्तान से व्यापारी चमड़े के बड़े बड़े थैलों में हींग लाते थे और हींग बेचने के बाद उस चमड़े के थैलों को यहां छोड़ जाते थे और जुगाड़ टेक्नोलॉजी से आगरा के बाशिंदों ने इन्ही थैलों से जूते और चप्पल बनाने का एक छोटा व्यवसाय शुरू किया जो आज हिंदुस्तान में बहुत बड़े व्यवसाय के रूप में दिखाई देता है। इससे एक बात और भी साबित होती है कि जुगाड़ टेक्नोलॉजी मुग़ल काल से पहले यहां विकसित हो चुका था जो आज दिल्ली और मुम्बई के बड़े बाज़ारों में चीनी निर्माताओं को पछाड़ते नज़र आता है।

हींग की मंडी में इसी जुगाड़ टेक्नोलॉजी के चलते नामी गिरामी जूतों के विदेशी निर्माताओं के देसी मॉडल सस्ते सस्ते दामों में उपलब्ध है लेकिन हींग की।मंडी में रिटेल नही सिर्फ और सिर्फ होलसेल में ही सौदा होता है। फिलहाल नोटबन्दी और कोरोना के चलते जूतों की इस बाजार का हाल भी वही था जो हमारा छम्मन लाल की पूड़ी की दुकान न मिलने से हो रहा था। हम दोनों ही बेहाल थे, हींग की।मंडी ग्राहकों के इंतज़ार में और हम छम्मन लाल की पूड़ी की दुकान की तलाश में।

हींग की मंडी से निकलते निकलते बुरा हाल हो चुका था और छम्मन लाल कि पूड़ी की तलाश का हौसला पस्त हो चुका था लेकिन गूगल बाबा का धन्यवाद जिन्हीने आगरा को घटिया में जाकर देखने का मौका दिया और सूरते हाल आगरा का वास्तविक दीदार कराया।

आगरा के सूरतेहाल देखकर सुप्रीम कोर्ट कि उस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जब केंद्र सरकार और राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायालय ने ताजमहल की देखरेख और संरक्षण पर ध्यान देने के लिए टिप्पणी करते हुए कहा था या तो इसे बंद कर दीजिए या फिर ताजमहल को ध्वस्त कर दीजिए। एफिल टावर को देखने करीब 8 करोड़ लोग आते हैं और ताज को देखने सिर्फ एक करोड़ लोग ही आते हैं और ऐसे में ताज नगरी को नजरअंदाज किया जाना एक बड़ा सवाल है।

पर्यटन की दृष्टि से होने वाला आर्थिक लाभ देखते हुए ताजनगरी को चमकाने और सुधारने की अति और अत्यंत आवश्यकता है जिसके लिए आगरा निवासियों ने अपना मुंडन करा कर प्रदर्शन तो कर दिया लेकिन अपने ही शहर को चमकाने के।लिए अपने बाल कटाने की ज़रूरत नही है, स्वंय सेवी संस्थाओं और वरिष्ठ नागरिकों को आगे आकर आगरा को आने हाथों से हरा, भरा, जगमगाता बनाना होगा जिससे देश की आन, बान और शान बनी रहे, सरकार पर पूरी निर्भरता ठीक नही आत्म निर्भर होकर अपने घर, और अपने शहर को सुंदर बनाइये।

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