क्या कठघरे से बाहर आ पाएँगे टीवी चैनल्स?

ज्ञान जहाँ से भी मिले, बटोर लीजिये… मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन के मुँह से निकले ये चंद शब्द आजकल सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। जानते हैं क्यों? असल में सोनी टीवी के चर्चित शो कौन बनेगा करोड़पति के ट्रेलर में अमिताभ प्रतिभागी महिला गुड्डी जी से एक सवाल पूछते हैं। इनमें से किसमें जीपीएस टेक्नोलॉजी होती है? ऑप्शन हैं- ए-टाइपराइटर, बी-टेलीविजन, सी-दो हजार के नोट और डी-सेटेलाइट

अमिताभ के सामने हॉटसीट पर मौजूद महिला जवाब दिया- दो हजार के नोट और स्वाभाविक तौर पर उनका उत्तर गलत था, जिसे अमिताभ ने कहा भी लेकिन गुड्डी जी ने उनसे कहा कि आप मजाक कर रहे हैं, सर। यह तो सभी न्यूज़ चैनल्स की खबर है। पूरा देश जानता है। अब अगर गलत है तो दोषी वे हुए न, मैं कैसे? शायद गुड्डी जी यह कहना चाह रही थीं कि मीडिया पर तो लोग भरोसा करते हैं और उन्होंने भी इसी भरोसे की वजह से सही जवाब के रूप में दो हजार के नोट में जीपीएस लगने को चुना।

प्रख्यात अभिनेता और मशहूर शो के उठाये गए सवाल से पूरा का पूरा मीडिया कठघरे में है| हम सबको याद है जब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की बात होती है तो जानकार सुझाव देना नहीं भूलते कि अमुक अख़बार का एडिटोरियल पेज जरूर पढ़ा करो| यह फायदे का सौदा साबित होगा। दो हजार के नोट में चिप की कहानी लगभग सभी प्रमुख चैनल्स पर चली थी। मजाक तब भी बना था। अब तो लोग भूलने लगे थे लेकिन इस ताजे घटनाक्रम की वजह से सब कुछ एक बार फिर से नजर के सामने आ गया।

ध्यान रहे, यह सब कुछ अंधी दौड़ में हुआ था क्योंकि रिजर्व बैंक या सरकार की ओर से ऐसी कोई भी औपचारिक जानकारी नहीं दी गयी थी पर, ख़बरों की अंधी दौड़ में ज्यादातर चैनल्स के नामी-गिरामी एंकर्स ने बिना जांच-पड़ताल इतनी बड़ी भूल कर दी कि अब मीडिया नए सिरे से कठघरे में है, ख़ास तौर से टीवी चैनल्स| क्योंकि 24 घण्टे चलने वाले किसी भी चैनल में आजकल एक दौड़ यह चल पड़ी है कि किसने खबर ब्रेक की? कई बार तो चैनल्स रूटीन की सामान्य सी खबर को भी ब्रेकिंग कहकर चलाते हुए देखे जाते हैं चैनल्स पर भूत-प्रेत, एलियन जैसी ख़बरें आम हैं।

ऐसे में अमिताभ बच्चन की जुबान से निकली ये लाइंस बेहद महत्वपूर्ण हो जाती हैं, जो पूरे-पूरे मीडिया घरानों को नए सिरे से सोचने को विवश करती है| संभव है कि चैनल्स में इसे लेकर चर्चा भी शुरू हो गयी हो लेकिन सबसे आगे और नम्बर एक रहने की होड़ में कोई भी जोखिम नहीं लेने को तैयार होगा और ऐसा होता तो कम से कम टीवी चैनल्स की ओर से कोई माफ़ी मांगता हुआ एक बयान तो आ ही जाता।

चूंकि, हम बेहद कमजोर हैं, इसलिए ऐसा होने की संभावना न के बराबर है| मुझे टीवी में बहुत कम समय तक काम करने का तजुर्बा है लेकिन जो भी है उसमें मुखिया के रूप में मैंने अनेक ख़बरें पुख्ता न होने की वजह से रोकीं| मेरे सीनियर्स हमेशा से कहते रहे हैं कि खबर को बिना जाँच-पड़ताल नहीं छापना है| कई बार ऐसी खबर छपने पर अखबारों में माफीनामा का प्रचलन रहा है। टीवी में तो मैंने नहीं सुना है कि किसी गलत खबर के चलने पर एंकर या रिपोर्टर ने ऑनस्क्रीन माफ़ी माँगी हो।

चूँकि, केबीसी ज्ञान आधारित शो है| लोग सही जवाब देकर लाखों और कई बार करोड़ भी जीतते आ रहे हैं, ऐसे में हमें नए सिरे से सोचना होगा| अपनी साख को नए सिरे से स्थापित करने की सोच विकसित करनी होगी| एक गलत खबर से किस तरह से किसी की जिन्दगी में नकारात्मक बदलाव आएगा, यह हम नहीं जान सकते।

टीवी ही नहीं, अखबारों में भी इस तरह की गलतियाँ होने के अनेक प्रकरण याद आते हैं| मुझे याद है कि बहराइच जिले के अख़बार में कोर्ट के बंद होने की सूचना छपी| उस खबर को आधार बनाकर एक साहब, जिन्हें अदालत में उसी तिथि में पेश होना था, नहीं पहुँचे| कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया। जब वे पेश हुए तो अख़बार की कतरन लगा दिया। अब जज साहब का गुस्सा बढ़ गया| उन्हें तो जमानत मिल गयी लेकिन अखबार के सम्पादक, रिपोर्टर, पब्लिशर सब तलब कर लिए गए। तीन लाइन की उस खबर के लिए तीन से चार पेज का माफीनामा सबकी ओर से लगा तब जान छूटी। चेतावनी अलग से मिली| बात थोड़ी पुरानी है| देश के एक बड़े अख़बार में खबर छपी कि अमुक महिला नेता की एक बेटी भी है, जबकि इस प्रभावशाली नेता की शादी तक नहीं हुई थी। यह बवाल इतना बढ़ा कि उस महिला नेता के समर्थक बाकायदा अख़बार के दफ्तर की ओर बढ़ गए| पुलिस-प्रशासन के अफसरों ने बड़ी मुश्किल से मामला संभाला खबर बाद में भी साबित नहीं हो पाई।

वर्ष 2019 की घटना है| टीवी और अनेक वेबसाइट पर खबर चली कि बिहार के 21 सौ किसानों का कर्ज अमिताभ बच्चन ने चुकाया| पर, इतनी महत्वपूर्ण खबर बिहार के प्रमुख अखबारों में नहीं छपी क्योंकि अखबारों के प्रतिनिधि लाभ पाने वाले किसानों को तलाश ही नहीं पाए। हालाँकि, अनेक वेबसाइट पर यह खबर आज भी मौजूद है| लेकिन किसी भी किसान का नाम, पता नहीं है| अनेक बार चैनल्स अपने अलग ही एजेंडे पर चलते हुए देखे जाते हैं। एंकर्स भी पार्टी बनते हुए देखे जा रहे हैं| इसीलिए अब यह बातचीत आम हो चली है कि अख़बार चूँकि 24 घंटे में एक बार निकलता है और चैनल 24 घंटे लगातार चलते हैं तो स्वाभाविक है कि टीवी में जोखिम भी ज्यादा है| ऐसे में टीवी के संपादकों को नए सिरे से सोचना होगा, जिससे गिरती हुई साख कुछ संभल सके।

मीडिया की इसी कमजोरी के बार-बार सामने आने की वजह से ही शायद अनेक फैक्ट चेकर्स सामने आ गए हैं और मीडिया की कमजोर नसों को दबाकर दुनिया के सामने सच लाने का प्रयास कर रहे हैं। भारत सरकार से लेकर राज्य सरकारों और अनेक मीडिया संस्थानों तक ने फैक्ट चेकिंग का काम शुरू कर दिया है।

यह सब कुछ मीडिया की साख पर सवाल है| इसे ठीक करने की जिम्मेदारी भी मीडिया के लोगों पर ही है। इस साख को बचाने की नयी कोशिश करनी होगी। तभी प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने वाले युवा हमसे जुड़ेंगे| फिर से साख की इस दौड़ में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल, सभी माध्यमों को नए सिरे से सोचना होगा।

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