अज़ीज़ सिद्दीकी भाई, यौमे पैदाइश की दिली मुबारकां !!

हमसे हमारी उम्र ना पूछना ए अज़ीज़ ! हम तो कलमकार हैं, हमेशा ही जवां रहते हैं !!

Azeez Siddiqui भाई को देखकर यह तो नहीं कहा जा सकता कि बुढ़ापा आ गया है लेकिन इस उम्र में इनके तजुर्बे और शख्सियत में एक ऐसी जवानी है जो अच्छे-अच्छे जवानों को भी शर्मिंदा कर देती है।

अज़ीज़ भाई की शक्सियत, अंग्रेजी की कहावत “Practice makes Man Perfect” की तरह है, जैसे-जैसे उम्र के पायदान पर अजीज भाई कदम रखते जा रहे हैं परफेक्शन के साथ-साथ उनके आत्मविश्वास को देखकर उत्तर प्रदेश की नई नस्ल की पत्रकारिता में एक नया जोश, जुनून दिखाई देता है। अक्सर अपने संगठन की युवा टीम, युवा जोश के साथ अज़ीज़ भाई दिखते है और कई दशकों की पत्रकारिता के अपने तजुर्बे अपनी युवा टीम के मार्गदर्शन के लिए सुनाते और समझाते रहते है।

भाई अज़ीज़ सिद्दीकी जिन्होंने अपनी पत्रकारिता का सफर कई दशक पहले ऐसे संस्थान से शुरू किया जो अखबार स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज कहलाते थे।

नेशनल हेराल्ड और कौमी आवाज जैसे अखबार आज भी लोगों के ज़हन में इसलिए बसते हैं क्योंकि जिन लोगों ने उन अखबारों को पड़ा है उनको मालूम है कि आजादी की लड़ाई को बुलंद करने वाले इन अखबारों ने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ खुलकर लिखा और कभी किसी से डरे नहीं, झुके नहीं। मीडिया के उस सुनहरे दौर में ऐसे संस्थान में काम करने की वजह से अज़ीज़ भाई के पास तजुर्बों की ऐसी दौलत है जिसकी चमक दमक न सिर्फ उनकी वेशभूषा में बल्कि शक्सियत में भी दिखती है।

डिजिटल युग की इस रफ्तार मीडिया में अज़ीज़ भाई की रफ्तार भी वंदेमातरम जैसी पटरी पर दौड़ती रेलगाड़ी को।पीछे छोड़ती दिखती है क्योंकि मीडिया की पटरी के ट्रैक को बेईमानी जैसे सस्ते और छोटे रास्ते पर चलना कभी पसंद नही किया, सफ़र लंबा और मुश्किल ज़रूर रहा लेकिन कामयाबी का बड़ा सुकून चेहरे पर साफ साफ दिखता है ।

बदलती पत्रकारिता के इस दौर में सबसे ज्यादा आपसी भाईचारे की जरूरत महसूस हो रही है जिसे मीडिया का एक बड़ा वर्ग बर्बाद करने में लगा है, ऐसे मुश्किल वक्त में कौमी आवाज और नेशनल हेराल्ड जैसे अखबार जो आम जन की आवाज बनकर खड़े होते थे उनके संस्मरण को अज़ीज़ सिद्दीकी जैसे पत्रकारों से समझने की आज के दौर के युवा पत्रकारों की बहुत बड़ी ज़रूरत है।

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