ट्री बैंकिंग परियोजना से कार्बन न्यूट्रैलिटी की तरफ बढ़ते कदम

वायनाड, मीनांगडी पंचायत के किसान अपने गांवों को जीरो कार्बन उत्सर्जन की तरफ ले जाने वाले एक ऐसे अनोखे अभियान से जुड़े हैं, जो जलवायु संकट से निपटने के उनके प्रयासों के बदले उनकी आर्थिक मदद करता है।

प्रियंका शंकर और निधिन टीआर

वायनाड। बेट्टी सुरेंद्रन राज्य सरकार की मदद से चलने वाले एक स्वयं सहायता समूह कुदुम्बश्री की एक कार्यकर्ता हैं। उनके पास केरल के वायनाड की मीनांगडी पंचायत में 50 सेंट(आधा एकड़) जमीन है। उन्होंने हाल ही में पंचायत कार्यालय में भूमि कर रसीद और आधार संख्या जमा कराने के बाद अपनी जमीन पर लगे सात पेड़ों को सफलतापूर्वक जियो-टैग कराया है। बेट्टी जब तक अपने इन पेड़ो को काटेंगी नहीं तब तक सरकार की तरफ से उन्हें अपने हर पेड़ के लिए सालाना 50 रुपये मिलते रहेंगे।

मीनांगडी में किसानों / जमींदारों को दी जाने वाली ये प्रोत्साहन राशि ‘ट्री बैंकिंग प्रोजेक्ट’ का हिस्सा है। जिसे एनजीओ थानाल और मीनांगडी पंचायत ने कार्बन न्यूट्रल मीनांगडी नामक एक बड़ी पहल के तहत शुरू किया है। दरअसल पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान (PES) एक ऐसी प्रणाली है जहां किसान अपनी जमीन का इस्तेमाल पर्यावरण को बेहतर बनाने में करता है और बदले में प्रोत्साहित करने के लिए उनकी आर्थिक मदद की जाती है।

इस विचार की कल्पना केरल के पूर्व वित्त मंत्री डॉ टीएम थॉमस इसाक ने की थी। एक शोध में पाया गया कि वायनाड में 2016-17 में 11,412 टन कार्बन-डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन हुआ था। इस शोध के आधार पर थानाल ने इसकी रूपरेखा बनाने में बनाने में मदद की। वन अधिकारियों और कृषि विशेषज्ञों के साथ बातचीत के बाद निर्णय लिया गया कि पेड़ों को उनके कार्बन उत्सर्जन में योगदान, उनके आर्थिक मूल्य, उनके विकास, कैनेपी एरिया, औषधीय गुणों और उनके धार्मिक मूल्यों समेत अन्य श्रेणियों के आधार पर लगाया जाएगा। चुने हुए प्रतिनिधियों ने लोकतांत्रिक तरीके से मीनांगडी को चुना क्योंकि यहां के लोग पहले से ही जलवायु चुनौतियों को लेकर जागरूक थे। यह पंचायत दूरदर्शन की एक ग्रीन एक्सप्रेस प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्ठ पंचायतों में से एक होने का पुरस्कार भी जीत चुकी है।

सुरेंद्रन कहते हैं, ” मेरे पास सिर्फ आधा एकड़ जमीन है, इसलिए मैं परियोजना के तहत केवल सात पेड़ ही लगा पाया हूं। लेकिन बहुत से किसानों ने ट्री बैंकिंग से 100 पेड़ों तक को जोड़ा है।”

एक जीत: आजीविका हासिल करते हुए जलवायु परिवर्तन को कम करना
101 रिपोर्टर्स के साथ बातचीत करते हुए थानाल के कार्यकारी निदेशक, जयकुमार सी ने समझाया, “जलवायु परिवर्तन हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है। हम कार्बन न्यूट्रलिटी पर आधारित एक विकास परियोजना बनाना चाहते थे। इसके लिए ट्री बैंकिंग एक सफल पहल के रूप में उभरा है। 2018 में, हम इस अनुमान के साथ आए थे कि कार्बन उत्सर्जन को कितना कम किए जाने की जरुरत है और इसके लिए कितने पेड़ लगाए जाए। हमारे सामने सवाल था कि ऐसा क्या किया जाए कि जिससे किसान इन पेड़ों की देखभाल करते रहें और कुछ दशकों के बाद भी उन्हें अपनी जमीन से काटे नहीं। इस तरह से किसानों को पेड़ों को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करने का विचार पैदा हुआ था। इसके लिए उन्हें सालाना प्रोत्साहन राशि और ब्याजमुक्त कर्ज दिया जाता है। इस योजना में किसान को पेड़ काटने की पूरी आजादी दी गई है, लेकिन अगर वे पेड़ काटने का फैसला करते हैं, तो उन्हें पैसे वापस करने होते हैं।”

इस योजना में किसानो के लिए एक ‘ट्री मॉर्गेज’ विकल्प भी मौजूद हैं जहां किसान अपने पेड़ों को गिरवी रखकर बैंको से कर्ज ले सकते हैं। इसके लिए पंचायत ने वन विभाग के अधिकारियों की अध्यक्षता में एक समिति बनायी है। अधिकारी पेड़ की उपयोगिता के आधार पर उसकी कीमत तय करते हैं। इसके बाद पंचायत से अनुमोदन लिया जाता है और फिर बैंक पेड़ के निर्धारित मूल्य के 75 प्रतिशत तक का ऋण स्वीकृत कर सकता है। जिन पेड़ों को किसान पैसों की दिक्कतों के चलते काटकर बेच दिया करते थे अब वही पेड़ जरूरत के समय उनकी मदद करेंगे। और साथ ही वो अपनी आय बढ़ाने के लिए पेड़ों से फल और अन्य उपज को बेच भी सकते हैं।

अधिकांश किसान अपने खेतों में मुख्य फसल के रूप में कॉफी और नारियल उगाते हैं। जिन पेड़ों को जियो- टैग किया जाता है वो आकार में काफी विशाल होते हैं। इनके बड़े तनों के सहारे काली मिर्च जैसी बेल वाली फसल आसानी से फल-फूल सकती है।

जयकुमार ने आगे कहा, ” इसके अलावा आने वाले समय में हमारा मकसद किसानों को इस काबिल बनाना है कि वे अपनी उपज को बाजार में बेहतर कीमत पर बेच सकें। वो अपनी फसल के लिए ग्रीन- फ्रेंडली टैग प्राप्त कर सकते हैं। इससे किसानों की आय को दोगुना करने के सरकार के उद्देश्य को पूरा करने में भी मदद मिलेगी।”

राह दिखाता एक कार्बन-न्युट्रल समुदाय
गोपी सीके के पास 68 सेंट जमीन है। उन्होंने इस परियोजना से अपनी जमीन पर लगे 53 पेड़ों को जोड़ा है। वह कहते हैं, “मुझे लगता है कि हम कम से कम 70 प्रतिशत पेड़ों को काटे जाने से बचा सकते हैं। कुछ किसानो को डर है कि अगर वे इस परियोजना का हिस्सा बने तो सरकार उनके पेड़ों को अपने नियंत्रण में ले लेगी। और वे आस-पास की फसल को धूप मिलते रहने के लिए अपने पेड़ों की शाखाओं की छटाईं तक नहीं कर पाएंगे। लेकिन इस तरह की कोई पाबंदी नहीं हैं। सभी को इस योजना का फायदा उठाने के लिए आगे आना चाहिए।”
ट्री बैंकिंग योजना से जुड़ने के बाद गोपी को पहले साल में पेड़ों की सुरक्षा के लिए 2,650 रुपये मिले हैं। और वह इसे आगे भी बनाए रखेंगे। उन्होंने कहा कि वह दिन का आधा समय अपने खेत पर जियो-टैग किए गए पेड़ों और अन्य फसलों की देखभाल में बिताते हैं। वह कहते हैं, “गर्मियों के मौसम में हमें अपनी पौध को धूप से बचाने के लिए अन्य पेड़ों की कटी हुई शाखाओं को खड़ा करके उनकी छाया करनी पड़ती है। जियो-टैग किए गए पेड़ों की उचित देखभाल करने के लिए खेत से खरपतवार भी निकालते रहना पड़ता है।”

दरअसल ये समुदाय जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले प्रभावों को लेकर काफी जागरूक है। ये इस बारे में पहले से काफी कुछ जानता है और पर्यावरण को बचाने में अपना सक्रिय सहयोग देना चाहता है। सुब्रमण्यम आरपी साल 1995 में वायनाड आए थे। वह याद करते हुए बताते हैं कि उस समय तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता था, लेकिन आज तो बिना पंखे के, घर के अंदर रह ही नहीं सकते हैं। उन्होंने 101 रिपोर्ट्स से कहा, ” बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की गई। जिस कारण तापमान बढ़ा है। पेड़ स्थानीय जलवायु को बनाए रखते हैं। हमारे और पर्यावरण दोनों के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगा जाएं।”

15 सेंट जमीन के मालिक सुब्रमण्यम पिछले साल अपने परिसर में सात पेड़ों की जियो-टैगिंग करके ट्री बैंकिंग प्रोजेक्ट से जुड़े थे। उन्होंने कहा ” हमने पहले ऐसे कई मामले देखे हैं जहां सख्त कदम उठाये के बावजूद, लकड़ी माफिया पेड़ों को काटने के लिए नियमों की अनदेखी करते रहे हैं। उनकी जगह इस तरह की आर्थिक योजनाओं को लागू करके, जनता को वायनाड में हरित क्षेत्र की रक्षा करने की जरूरत को लेकर एक संदेश दिया जा रहा है। लेकिन अधिकारियों और एनजीओ को समय-समय पर इस परियोजना का निरीक्षण करते रहना होगा ताकि पेड़ सुरक्षित बने रहें।” उन्हें सालाना भुगतान में बढ़ोतरी की उम्मीद है।

पंचायत की मदद से मनरेगा योजना के तहत भी पेड़ लगाए गए हैं। वृक्षारोपण परियोजना के योजना समन्वयक अजित टॉमी ने कहा, “हमने कई इलाकों का सर्वे किया और पाया कि कुछ ऐसे किसान, जिनके पास सिर्फ तीन पेड़ हैं, वो भी इस योजना का हिस्सा बनना चाहते हैं। समुदाय ने पर्यावरण को बचाने के लिए जो लक्ष्य बनाया है वे उसका हिस्सा बनकर उसका समर्थन करना चाहते हैं। उनकी यही भावना हमें योजना में ज्यादा लोगों को शामिल करने और दूर-दराज के मुश्किल इलाकों में पेड़ों का सर्वे करने के लिए प्रेरित करती है।”

ट्री बैंकिंग प्रोजेक्ट कार्बन-न्युट्रल की परियोजना का हिस्सा है, जिसमें कई क्षेत्र मसलन कृषि, ऊर्जा, यातायात, कचरा, पानी , सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास से जुड़ीं शानदार साझेदरियां हैं। इसका मतलब है ऊर्जा संरक्षण से जुड़े प्रोजेक्ट जैसे एलईडी बल्ब, ऊर्जा बचत करते स्टोव, और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े प्रोजेक्ट जैसे सौर स्ट्रीट लाइट, ऊर्जा पार्क, बायोगैस प्लांट, इलेक्ट्रिक ऑटो-रिक्शा जैसी अन्य पहलें।

मुश्किलों मुद्दों से सामुदायिक स्तर पर निपटने की भावना के बारे में समझाते हुए जयकुमार कहते हैं, “केरल के लोगों ने हमेशा दुनिया की बेहतरी और सामूहिक लक्ष्यों के बारे में सोचा है। यहां की उच्च साक्षरता दर और सामुदायिक प्रयासों के चलते ट्री बैंकिंग और अन्य पर्यावरणीय परियोजनाएं काफी सफल रही हैं। यह प्रकृति और उसके प्रति समाज के दायित्व से जुड़ी एक योजना है। इस मॉडल में जरूरत के अनुसार बदलाव लाकर, भारत के विभिन्न जिलों में दोहराया जा सकता है।”

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101Reporters के सदस्य हैं, जो ग्रामीण क्षेत्र के पत्रकारों का सर्वत्र भारत में फैला नेटवर्क है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button