गौशालाओं में बजट कैसे अपर्याप्त

अज़ीम मिर्ज़ा

अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार पशुओं को भूख और प्यास से मुक्ति, असुविधा से मुक्ति, दर्द, चोट या बीमारी से मुक्ति, भय और संकट से मुक्ति के साथ-साथ सामान्य व्यवहार को व्यक्त करने की स्वतंत्रता का भी अधिकार प्राप्त है। कानूनी तौर पर तो पशुओं को यह अधिकार मिले हुए हैं, लेकिन क्या इनका क्रियान्वयन सही ढंग से हो पा रहा है। इसको जानने के लिए हमें यह जानने की जरूरत है कि कहाँ पर इनका ठीक से क्रियान्वयन हो रहा है कहाँ पर और सुधार की गुंजाईश है।

इधर कुछ वर्षों से उत्तर प्रदेश के तमाम गौवंश पालकों ने जब गाय दूध देने के काबिल नहीं रह गई तो उसे खूंटे से खोल कर भगा दिया। लगभग यही हाल नर गौवंश का भी हुआ, पहले किसान खेती बाड़ी के कामों में नर पशुओं का इस्तेमाल करता था, लेकिन मशीनीकरण के कारण नर गौवंश की उपयोगिता लगभग समाप्त हो गई। इसलिए लोंगों ने नर गौवंशों को अपने दरवाज़े से हटा दिया। यह तमाम बेसहारा गौवंश जब किसानों की खेत मे लहलहाती फसलों से भूख मिटाने लगे, तो यह स्टेट के लिए एक समस्या के रूप में उभर कर सामने आई। तब सरकार ने इनके रहन सहन के उपाय सोंचे और बेसहारा गौवंशों के लिए प्रदेश भर में अस्थाई और स्थाई गौशालाओं का इंतेज़ाम किया गया।

उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग की वेबसाइट के अनुसार प्रदेश में 1184494 बेसहारा पशु हैं। जिसमें से सरकार ने 950174 पशुओं को संरक्षित किया है। जिनके रहन-सहन और भोजन की व्यवस्था पर प्रदेश सरकार ने गौ कल्याण के नाम पर 2019-20 में 500 करोड़ रुपये आवंटित किए जो व्यवस्था अभी भी लागू है।

इतने भारी-भरकम बजट के बावजूद पशुओं को मिलने वाले पहले अधिकार “भूख और प्यास से मुक्ति” में ही काफी विषमताएं हैं। पूरे प्रदेश में जितने भी बेसहारा गौवंश हैं, उनके लिए योगी सरकार में कई योजनाएं आक्षादित हैं। इन सभी योजनाओं में एक पशु को एक दिन के चारे के लिए सरकार ने 30 रू आवंटित कर रखे हैं। जबकि आम तौर एक पशु एक दिन में जो खाता है, और उस पर जो खर्च आता है। उस रकम तथा सरकार द्वारा दी जा रही रकम में बहुत अन्तर है।

आरटीआई एक्टिविस्ट रीना जैन द्वारा किये गए सवाल के जवाब में पशुपालन विभाग के न्यूट्रीशियन डिपार्टमेंट ने लिखित तौर पर कहा है कि भूसा, हरा चारा और अनाज जो एक दिन में पशु को दिया जाना चाहिए, उस पर सौ रुपए से लेकर एक सौ दस रू प्रतिदिन का खर्च आता है। रीना जैन को दिए गये जवाब में डिपार्टमेंट ऑफ एनीमल न्यूट्रीशन, कालेज आफ वैटनरी साइंस एण्ड एनीमल हस्बेन्ड्री, दीन दयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवम अनुसंधान संस्थान, मेरठ के प्रोफेसर व न्यूट्रीशन विभाग के हेड विनोद कुमार ने 16 जुलाई 2022 के अपने पत्र में कहा है कि गाय के वजन के हिसाब से उसका खान-पान भी निर्धारित होता है। अगर गौवंश 250 किलो ग्राम का है तो उसे भूसा 4 किलोग्राम, हरा चारा 5 किलोग्राम पौष्टिक आहार/अनाज 1 किलोग्राम प्रति दिन की आवश्यकता होती है। इसी तरह अगर पशु 300 किलोग्राम का है तो भूसा 4.5, हरा चारा 7 किलोग्राम व पौष्टिक आहार/अनाज 1.5 किलोग्राम चाहिए तथा अगर पशु काफी तंदुरस्त है और उसका वजन 350 किलोग्राम है तो भूसा 5 किलोग्राम, हरा चारा 8 किलोग्राम व पौष्टिक आहार/अनाज 1.5 किलोग्राम प्रति दिन की आवश्यकता होगी। इस हिसाब से एक गौवंश के भोजन पर प्रति दिन 100 से 110 रू खर्च आयेगा।

जबकि उत्तर प्रदेश सरकार 30 रू प्रति गौवंश प्रतिदिन के हिसाब से देती है, जो सरकार के ही ससंस्थानों के हिसाब से उपयुक्त नहीं है। इससे यह बात साबित हो जाती है कि सरकार के भारी भरकम बजट के बावजूद गौवंश को भर पेट पौष्टिक भोजन नहीं मिल पा रहा है। इसलिए इस बजट को और बढ़ाए जाने की आवश्यकता है ताकि गौवंश स्वस्थ्य हों।

लेकिन ऐसा नहीं है कि सारे गौवंशों को भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है। गौवंशों में कुछ देसी गाय ऐसी हैं जो दूध कम देती है और उन्हीं को किसान दूध देने तक अपने पास रखता है। दूध देना बन्द कर देने पर किसान उनको मैदानों में हॉक देता है। ज़्यादातर यही गौवंश सरकार पर बोझ बनते हैं। जबकि कुछ देसी गाय जैसे गिर गाय, साहिवाल गाय, लाल सिंधी और राठी गाय यह काफी अच्छी नस्ल की गाय हैं और दूध भी अधिक देती हैं कोई-कोई गिर गाय तो 50 किलोग्राम तक दूध दे देती हैं।

साहीवाल गाय मूलतः हरियाणा की है लेकिन उत्तर प्रदेश में भी काफी पशु पालक इसको पालते हैं। इसी तरह गिर गाय मूलतः राजस्थान और गुजरात में पाई जाती है लेकिन इसको भी अब लोग उत्तर प्रदेश में पालने लगे हैं। इसी तरह विदेशी गायों में जर्सी, होल्स्टीन, फ्रीजियन भी काफी अधिक मात्रा में दूध देती हैं। इसलिए यह पशु पालकों और किसानों में ज़्यादा लोकप्रिय हैं। क्योंकि इन गायों का पालने से पशु पालकों को अधिक लाभ होता है इसलिए इनको भर पेट भोजन और पौष्टिक पशु आहार भी मिलता है, ताकि इनका दूध न कम होने पाए।

अब ऐसे में बजट बढ़ाए जाने के साथ-साथ गौवंश के नस्ल सुधार पर भी विशेष तौर पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इस कार्य हेतु प्रदेश सरकार ने अपने 2022-23 के बजट में बताया है कि कृत्रिम गर्भाधान योजना अन्तर्गत 99290 कृत्रिम गर्भाधान किया गया, जिसके सापेक्ष 7358 मादा सन्तति एवं 949 नर सन्तति कुल 8307 संततियों की प्राप्ति हुई। इसी तरह राष्ट्रीय गोकुल मिशन अंतर्गत 95 भ्रूण साहीवाल नस्ल की गायों में प्रतियोपित किए गए। जिनमें उच्च अनुवांशिक गुणवत्ता युक्त साहीवाल नस्ल के 75 पशु गर्भित पाए गए। जिसके फलस्वरूप 63 संततियां उतपन्न हुई। नस्ल सुधारने व उच्च गुणवत्ता युक्त देसी नस्ल के उत्पादन हेतु 36.92 करोड़ की लागत से बरेली में एक भ्रूण प्रत्यारोपण केन्द्र भी स्थापित किया गया है।

जितनी जल्दी सरकार गौवंश के नस्लों के सुधार कार्यो को आमजन तक पहुचाने में कामयाब हो जाएगी, उतनी जल्दी सरकार को बजट बढ़ाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बल्कि नस्ल सुधार से गौवंश उपयोगिता बढ़ेगी और साथ ही साथ प्रदेश में दुग्ध उत्पादन भी बढ़ जाएगा। जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसानों की भी मदद करेगा।

This article by Azeem Mirza is a part of a media fellowship supported by The Pollination Project and FIAPO.

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