गौशालाओं की दशा व उसके आर्थिक सुधार की संभावनाएं
![अज़ीम मिर्ज़ा](https://www.ainatoday.com/wp-content/uploads/2022/09/Azeem-mirza-e1662540359333-150x150.jpeg)
गाय को रहने के लिए कितनी जगह चाहिए, उसको कितना भोजन चाहिए, उसको बीमार होने पर क्या दवा दी जानी चाहिए। यह मुझे नहीं मालूम। यह शब्द हैं पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहराइच जनपद अंतर्गत कैलाशनगर वासी तुलसीराम के। वह आगे बताते हैं कि हमारे गाँव में बेसहारा घूम रही गायों के कारण तमाम किसानों की फसल चर जाती थी तो गाँव वालों ने यह निर्णय लिया कि इन फालतू घूम रहे गौवंश को सहेज कर एक गौशाला का निर्माण किया जाय, सो गौशाला बन गई।
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कैलाश नगर के छ: लोंगों ने किसान सामूहिक गौशाला नाम से एक संगठन तैयार कर 800 मीटर के रकबे में बल्ली खूँटा गाड़ कर पिछले वर्ष गौशाला की बुनियाद रख दी। फिर उसमें बेसहारा गायों को लाकर इकट्ठा किया जाने लगा। इस वक्त इस गौशाला में 130 गौंवंश हैं जिनके भूसे व चारे का इंतेज़ाम सामुदायिक रूप से किया जाता है। इनको गेहूँ की फसल में भूसा और धान की फसल तैयार होने के बाद पैरा ही मिल पाता है, इनके लिए हरे चारे की कोई व्यवस्था नहीं है।
धान और गेहूँ की फसल तैयार होने पर किसान अपनी स्वेच्छा से भूसा और पैरा गौशाला को दान दे देते हैं गौशाला में जो गोबर इकट्ठा होता है उसे किसानों को बेच दिया जाता है, इस बार जो खाद की बिक्री हुई उससे इकट्ठा हुए पैसे से 14 बाई 35 फिट लम्बा एक टीन शेड बनवाया गया है जिसमें पानी बरसते समय गाय छुप सकती हैं, लेकिन यह 130 गाय के लिए पर्याप्त नहीं है इसमें 75 से 80 गाय ही आ पाती हैं। 130 गौंवंश की इस गौशाला में गाय, बछड़े और बैल सभी है, इनमें आधे से अधिक गाय हैं जिनमें तीन गाय दिनभर में सिर्फ 6 लीटर दूध देती हैं।
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1 मार्च 2022 को किसान सामुहिक गौशाला के नाम से इस गौ आश्रय स्थल का जन्म हुआ था तब इसमें 7 लोग थे लेकिन गौशाला में कोई फायदा न देख 4 लोग अलग हो गए, अब सिर्फ 3 लोग ही सक्रिय रूप से इसका संचालन कर रहे हैं। गौशाला को आर्थिक सहयोग के लिए तुलसी राम उपजिलाधिकारी मिहीपुरवा और बहराइच सांसद अक्षयबर लाल गौड़ के पास भी गए लेकिन संस्था पंजीकृत नहीं होने के कारण इस संस्था को किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिल सकी है।
भारत में उत्तर प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहाँ गाय को लेकर राजनीतिक प्रभाव भी पड़ता है, इसलिए सरकार की भी इस पर विशेष तवज्जो रहती है। इसलिए वार्षिक बजट में गाय से जुड़ी योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2019-2020 के बजट में गोशालाओं के रखरखाव के लिए 247.60 करोड़ रुपये आवंटित किए और शराब की बिक्री पर लगे विशेष शुल्क से मिले करीब 165 करोड़ रुपये निराश्रित एवं बेसहारा गोवंशीय पशुओं के भरण-पोषण के लिए इस्तेमाल हुए। वर्ष 2019 की पशु गणना के अनुसार प्रदेश में 19019641 गौवंशीय पशु हैं, जिसमें 1184494 पशु बेसहारा हैं। सरकार अपनी वेबसाइट पर दावा करती है कि 950174 पशुओं को संरक्षित किया गया है।
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गौंवंशों को संरक्षित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार 1. कान्हा उपवन, 2. बृहद गो आश्रय स्थल, 3. अस्थाई गो आश्रय स्थल ग्रामीण, 4. अस्थाई गो आश्रय स्थल शहरी, व 5. कांजी हाउस संचालित कर रही है। सरकार के भारी भरकम बजट खर्च करने और अनेकों योजनाएं चलाने के बावजूद गौंवंशों का रख-रखाव बेहतर ढंग से नहीं हो पा रहा है।
पशु को खिलाने, दूध निकालने अथवा उसकी चहल कदमी के लिए 12-14 वर्ग. मी. जगह की आवश्यकता होती है जिसमें से 4.25 व.मी.(3.5 1.2 मी.) ढका हुआ तथा 8.6 व.मी.खुला हुआ होना चाहिए। व्यस्क पशु के लिए चारे की खुरली (नांद) 75 सेमी. छड़ी तथा 40 सेमी गहरी होनी चाहिए। जिसकी अगली तथा पिछली दीवारें क्रमश:75 व 130 सेमी.होती है। खड़े होने से गटर (नाली) की तरफ 2.5-4.0 सेमी होना चाहिए। खड़े होने का फर्श सीमेंट अथवा ईंटों का बनाना चाहिए। गटर 30-40 सेमी चौड़ा तथा 5-7 सेमी गहरा तथा इसके किनारे गोल रखने चाहिए। इसमें हर 1.2 सेमी. के लिए 2.5 सेमी ढलान रखना चाहिए। बाहरी दीवारें 1.5 मी. ऊँची रखी जानी चाहिए। इस विधि में बछड़ों – बछड़ियों तथा ब्याने वाले पशु के लिए अलग से ढके हुए स्थान में रखने की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा दाने चारे को रखने के लिए भी ढके हुए स्थान की व्यवस्था की जानी चाहिए।
इसके अतिरिक्त गर्मियों के लिए शेड के चारो तरफ छायादार पेड़ लगाने चाहिए तथा सर्दियों तथा बरसात में पशुओं को ढके हुए भाग में रखना चाहिए। सर्दियों में ठंडी हवा से बचने के लिए बोरे अथवा पोलीथीन के पर्दे लगाए जाने चाहिए। लेकिन कुछ एक निजी गौशालाओं को छोड़कर यह व्यवस्था कहीं नहीं देखने को मिलती है।
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उत्तर प्रदेश के बहराइच में 5 योजनाओं से आच्छादित 95 गौशालाएं हैं। जिसमें 2 कान्हा उपवन, 4 बृहद गो आश्रय स्थल, 2 आस्थाई गो आश्रय स्थल शहरी, 69 आस्थाई गो आश्रय स्थल ग्रामीण व 18 कांजी हाउस संचालित हैं जिनमें 10763 गौवंश निवास करते हैं। आस्थाई गो स्थलों को अगर छोड़ दिया जाय क्योंकि वहाँ गौवंशो की संख्या घटती-बढ़ती रहती है तो भी जिन गौशालाओं में पक्का निर्माण वह भी व्यवस्था बहुत बेहतर नहीं है, पक्की गौशालाओं में पेड़ की व्यवस्था नहीं है। गौशालाओं की नालियां न ही साफ सुथरी हैं न ही गौशाला ऊँचे स्थान पर बनाया गया है इसलिए जानवरों को बरसात में दिक्कत होती है।
जब गौशालाएं साफ-सुथरी और ऊँचे स्थान पर नहीं होती हैं तो गन्दगी के कारण कार्बनडाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, अमोनिया सल्फाइड, मीथेन गैसों का उत्सर्जन होता है, जो गौशाला में काम करने वाले लोंगों और पशुओं दोनों के लिए हानिकारक है, कई बार इससे उतपन्न रोगों से पशुओं की मौत भी हो जाती है। कुछ व्यक्तिगत गौशालाएं जिनमें अच्छी नस्ल की गाय हैं उनके अलावा कमोबेश सरकारी गौशाला हो, व्यक्तिगत गौशाला हो या सामूहिक गौशाला हो किसी में स्थितियां सम्मानजनक नहीं है, कहीं जगह कम है, कहीं उचित स्थान पर गौशालाओं का निर्माण नहीं हुआ है तो कहीं पर जानकर लोंगों की कमी है।
इसलिए गौशालाओं के विकास के लिए अभी बहुत अधिक सम्भावना है। गौशालाओं की साफ-सफाई का ध्यान देने के साथ-साथ अगर गौशाला से निकलने वाले कच्चे माल यानी गोबर से दूसरी वस्तुएं बनाने के लिए प्रोत्साहन दिया जाए तो गौशाला की आमदनी में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है। आज कल गोबर के दिए, स्वदेशी पेण्ट, उपले आदि अच्छे दामों पर मार्केट में बिकते हैं। अगर गौशाला चलाने वालों को इसकी ट्रेनिंग और उपकरण उपलब्ध कराए जाएं तो गौशालाओं की आर्थिक स्थित सुधारी जा सकती है।